बस में रोमांस की इस कहानी की शुरुआत उस दिन हुई जब मैं ऑफिस से थका-हारा लौट रहा था जब देखा कि बस स्टॉप पर मेरी सोसाइटी की पिंकू भाभी खड़ी थीं। वो हमेशा की तरह खूबसूरत लग रही थीं — हल्की नीली साड़ी, टाइट ब्लाउज और माथे पर छोटी सी बिंदी। भाभी की कमर हर बार की तरह इस बार भी कातिल लग रही थी।
बस आई और भीड़ ऐसी थी कि तिल रखने की भी जगह नहीं थी। भाभी पहले चढ़ीं, और मैं उनके पीछे-पीछे। भीड़ में धक्के खाते हुए हम दोनों बस के बीचोंबीच खड़े हो गए।
भीड़ इतनी ज़्यादा थी कि मेरा बदन सीधा भाभी के पीछे टकरा गया। पहले तो मैंने थोड़ा हटने की कोशिश की, लेकिन जब भाभी ने पीछे मुड़कर हल्की मुस्कान दी और कुछ नहीं कहा… तो मेरा दिल धक-धक करने लगा।
“भीड़ बहुत है न?” मैंने उनके कान में कहा।
“हाँ… और तुम तो बिलकुल चिपक गए हो,” उन्होंने हँसते हुए जवाब दिया।
मैंने बहाना बनाते हुए उनके कंधे पर हाथ रखा ताकि मैं खुद को बैलेंस कर सकूं। पर सच्चाई ये थी कि अब मेरा लंड खड़ा हो चुका था और भाभी की गांड से टकरा रहा था।
भाभी ने एक बार फिर मुड़कर देखा, और उनकी मुस्कान कुछ और कह रही थी।
“इतना भी मत चिपको देवरजी…” वो बोलीं, पर उनकी आँखें कह रही थीं – “चिपको तो और मज़ा आएगा।”
अब बस हर ब्रेक पर झटके खाती, और हर बार मेरा लंड और गहराई से भाभी की गांड से लग जाता। मैंने हलके से अपनी जांघ उनके पीछे की और खिसकाई ताकि मेरा लंड उनकी साड़ी के अंदर उनकी गांड को साफ महसूस कर सके।
भाभी की साँसे तेज़ हो गई थीं। उनके कान की बाली हिल रही थी और गाल लाल हो गए थे। मैंने एक झटके में उनकी कमर पर हाथ रख दिया।
“क्या कर रहे हो?” उन्होंने धीरे से पूछा।
“बस भीड़ है भाभी… पकड़ना तो पड़ेगा…”
अब मेरा हाथ उनकी कमर से होते हुए पेट पर पहुंच गया। भाभी ने कुछ नहीं कहा, बस आँखें बंद कर लीं। मैंने उनकी साड़ी को थोड़ा सरकाया और अब मेरा हाथ उनके ब्लाउज के नीचे था।
उनकी गर्म त्वचा ने मेरे हाथ को थाम लिया। मेरी उंगलियाँ उनके पेट पर घूम रही थीं और धीरे-धीरे ऊपर बढ़ रही थीं।
“पागल हो क्या राहुल…” भाभी ने कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में कोई गुस्सा नहीं था।
मेरे हाथ अब उनके ब्रा तक पहुँच गए। मैंने धीरे से ब्रा के अंदर हाथ डालकर उनकी एक चूची पकड़ ली।
“उफ़्फ्फ…” भाभी के मुँह से निकला और उन्होंने अपना सिर थोड़ा मेरी ओर झुका लिया।
अब बस के झटकों से भाभी की चूची मेरी उंगलियों में दब रही थी और मेरा लंड उनकी गांड में धँसा था। मैंने धीरे-धीरे चूची मसलनी शुरू की।
भाभी अब खुद भी पीछे झुकने लगी थीं, जिससे मेरा लंड और गहराई से घुसता चला गया।
“राहुल… अगर किसी ने देख लिया तो…”
“तो कह देना भीड़ थी…” मैंने मुस्कुराकर कहा और अब दूसरी चूची भी मेरी गिरफ्त में थी।
अब मेरे दोनों हाथ उनके ब्लाउज के अंदर थे, और मैं दोनों चूचियाँ दबा रहा था। भाभी के निप्पल सख्त हो चुके थे, और उनकी कमर मचल रही थी।
अब मैंने अपने हाथ नीचे सरकाए और उनकी साड़ी के पल्लू को पीछे से उठा दिया।
मेरे हाथ अब उनकी कमर से होते हुए उनकी गांड पर थे। मैंने गांड की गोलाई पर हाथ घुमाया और धीरे से साड़ी के नीचे उनकी पैंटी में हाथ डाल दिया।
“उफ़्फ राहुल… बस यही बचा था…” उन्होंने कहा, लेकिन उनकी चूत से बहता रस बता रहा था कि वो पूरी तरह तैयार थीं।
मेरी उंगली अब उनकी गीली चूत के पास पहुँच गई। जैसे ही मैंने छुआ, भाभी हिल गईं।
“तुम्हें पता है न मेरी चूत में उंगली डालोगे तो मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगी…”
“बस का अगला स्टॉप सुनसान है… वहाँ उतरें?”
“हाँ… मैं तो कब से चाहती थी…”
अगले स्टॉप पर हम उतर गए। वो सुनसान जगह थी, एक पुराना बस स्टॉप। भाभी को मैंने हाथ पकड़कर पीछे की ओर एक बंद दुकान के पीछे ले गया।
अब वो पूरी तरह मेरे सामने थीं — साड़ी ऊपर, पैंटी नीचे। उनकी चूत से रस टपक रहा था। मैंने घुटनों के बल होकर उनकी चूत चाटनी शुरू की।
“हां… वहीं चाटो राहुल… चूसो मेरी चूत…” भाभी अब बेकाबू थीं।
मैंने जीभ अंदर डाली, फिर बाहर निकाली, और बार-बार उनकी चूत को चूसा।
फिर मैंने खुद को निकाला और अपना लंड भाभी की चूत में डाल दिया।
“आह्ह्ह्ह… हाँ राहुल… मेरी चूत तो ऐसे ही चोदने के लिए बनी है…”
मैंने पूरी ताकत से ठोकना शुरू किया — उनकी चूत भींग रही थी, और मेरी कमर लगातार हिल रही थी। हर ठोकाई पर भाभी कराह रही थीं —
“हाँ… और ज़ोर से… मेरा गीला माल तोड़ दो राहुल…!”
करीब 10 मिनट तक मैंने भाभी को चोदा। फिर मैंने लंड निकाला और उनके पेट पर सारा वीर्य छोड़ दिया।
भाभी हाँफ रही थीं। उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा —
“अब ऑफिस से लौटते हुए रोज़ इसी बस में मिलना…”
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