बनारस का वो गर्मियों का महीना था, जब गंगा किनारे हवा भी जैसे पिघल रही हो। मैं अपने घर में अकेला था, पत्नी दिल्ली में थी और काम-काज का बोझ भी नहीं था। घर की सफाई और रसोई का सारा जिम्मा मेरी हाउस मेड पूजा के पास था।
पूजा… नाम सुनकर शायद आप सोचेंगे एक साधारण औरत होगी, लेकिन भाई, उसके हुस्न का तो क्या कहना — गेहुआं रंग, गोल मटोल सेब जैसे स्तन, पतली कमर और कसावदार हिलती गांड। जब भी वो झुककर पोछा लगाती, मेरा लंड अपने आप खड़ा हो जाता।
पहली बार मन डोलना
सुबह-सुबह पूजा आयी। बनारस की उमस भरी गर्मी में उसने हल्का हरे रंग का पतला सूती ब्लाउज और लाल पेटीकोट पहना था। पसीने की हल्की परत उसके गले और सीने पर चमक रही थी। बिना ब्रा के होने की वजह से उसके निप्पल की गोलाई साफ नजर आ रही थी।
मैं अखबार पढ़ने का दिखावा कर रहा था, लेकिन नज़र उसकी झुकी हुई कमर और हिलती हुई गांड पर अटक गई थी।
जब वो फर्श पर झुककर पोछा मार रही थी, उसकी पीठ पर पसीना चमक रहा था और ब्लाउज की कपड़े से उसकी पीठ का हर उभार झलक रहा था।
हल्की छेड़छाड़ की शुरुआत
मैं उठकर किचन की तरफ गया। पूजा बर्तन धो रही थी, पानी की बूँदें उसके हाथ से होते हुए पेटीकोट पर गिर रही थीं।
मैंने हंसकर कहा,
“पूजा, इतनी मेहनत करती हो… थक जाती होगी ना?”
वो बोली, “अरे साहब, ये तो मेरा रोज का काम है, आदत है।”
मैंने उसकी पीठ पर हल्के से हाथ रखा। वो चौंकी, पर हटाई नहीं।
“तुम्हारे हाथ कितने मुलायम हैं पूजा… लगता है कभी खेत-खलिहान में काम नहीं किया।”
वो मुस्कराई और बोली, “साहब, आपको तो हर चीज नोटिस करने की आदत है।”
पहला छुपा टच
मैंने धीरे-धीरे उसकी कमर पकड़ ली। पूजा ने हल्का सा मुँह फेर कर मेरी तरफ देखा, लेकिन विरोध नहीं किया।
मैंने फुसफुसाकर कहा,
“पूजा, तुम्हारा बदन बहुत हसीन है… बस एक बार महसूस करने का मन करता है।”
वो थोड़ी शर्माई, “साहब… ऐसा मत कहो… पर आपका टच अच्छा लग रहा है।”
बस, मैंने मौका पकड़ा और पीछे से उसके ब्लाउज की हुक खोल दी।
कपड़े उतरना और माहौल गरम होना
ब्लाउज ढीला हुआ और उसके भरे-भरे सेब जैसे स्तन मेरी आँखों के सामने आ गए। हल्की-सी पसीने की नमी उनके ऊपर चमक रही थी।
मैंने बिना वक्त गंवाए उसके एक निप्पल को होंठों में भर लिया। पूजा ने कराहते हुए कहा,
“आह… साहब… ये क्या कर रहे हैं…”
मैंने दूसरा निप्पल भी चूसना शुरू किया, एक हाथ से उसकी गांड दबा रहा था।
पूजा की साँसें तेज हो रही थीं, उसकी आँखें बंद हो चुकी थीं।
पहली बार चाटना
मैंने उसे किचन के स्लैब पर बिठाया, पेटीकोट ऊपर किया।
अंदर उसकी गुलाबी और हल्की गीली चूत नजर आई।
मैंने अपनी जुबान से उसके होठों को अलग किया और चाटना शुरू किया।
पूजा की टाँगे कांपने लगीं।
“ओह… साहब… वहाँ क्यों… बहुत अजीब लग रहा है… लेकिन अच्छा भी।”
मैंने उसकी चूत को ऐसे चाटा जैसे कोई आम का रस चूस रहा हो।
वो कराहते हुए मेरी गर्दन पकड़ने लगी।
लंड का अंदर जाना
अब मैं खुद को रोक नहीं पाया। पैंट उतारकर अपना खड़ा और धड़कता हुआ लंड बाहर निकाला।
पूजा की आँखें चौड़ी हो गईं,
“साहब… ये तो बहुत बड़ा है… दर्द नहीं होगा?”
मैंने मुस्कराकर कहा,
“पहले धीरे-धीरे डालूंगा… फिर देखना, दर्द की जगह सिर्फ मजा होगा।”
मैंने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रखा और धीरे-धीरे धकेलना शुरू किया।
पहले तो पूजा ने होंठ भींच लिए, लेकिन जैसे-जैसे लंड अंदर गया, उसके होंठों से आहट निकलने लगी।
तेज़ झटके और अलग-अलग पोजीशन
कुछ देर बाद उसने खुद ही मेरी कमर पकड़कर झटके खाने शुरू कर दिए।
अब मैं जोर-जोर से लंड मार रहा था। उसके स्तन ऊपर-नीचे हिल रहे थे, पसीना टपक रहा था और उसकी चूत से ‘चप-चप’ की आवाज आ रही थी।
करीब 10 मिनट बाद मैंने उसे फर्श पर डॉगी पोजीशन में किया।
उसकी गांड मेरे सामने थी, गोल और कसावदार।
मैंने पीछे से लंड डाला और तेज़ झटके मारने लगा।
पूजा हर झटके पर कराह रही थी,
“हाँ… साहब… और तेज़… मेरी चूत फाड़ दो… आह…”
चरम सुख
करीब 25 मिनट के अलग-अलग पोजीशन के बाद, मैंने उसे सोफे पर बिठाकर गोदी में लिया और लंड उसकी चूत में पूरी ताकत से डाला।
पूजा ने मेरी गर्दन पकड़कर कसकर खुद को मुझसे चिपका लिया और तेज़ सांसों के साथ बोली,
“आ रहा है… साहब… मेरा पानी निकल रहा है…”
मैंने भी खुद को रोका नहीं और उसकी चूत में ही गाढ़ा वीर्य छोड़ दिया।
बाद का रिश्ता
हम दोनों थके, पसीने से भीगे, चुपचाप वहीं सोफे पर लेट गए।
पूजा ने मेरे सीने पर सिर रखकर कहा,
“अब मैं सिर्फ आपकी हूँ… जब भी बुलाओ, आ जाऊँगी।”
उस दिन के बाद, जब भी घर खाली होता, बनारस के इस पुराने घर की दीवारों ने हमारी गरमागरम चुदाई देखी।
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