गाँव में गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी। खेतों में काम का मौसम भी था और शादी-ब्याह के चक्कर में लोग एक-दूसरे के घर आना-जाना कर रहे थे। मैं, विक्रम, अपने मामा के गाँव आया था। असल में मामा जी ने मुझे बुलाया था कि उनके खेत में कुछ काम करवा दूँ।
मामा का घर बड़ा था और परिवार भी अच्छा-खासा था। मामी तो बेहद सुन्दर थीं, लेकिन उनकी छोटी बहन रुचि… अरे बाप रे, वो तो जैसे गाँव की हीरोइन थी। गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, पतली कमर, और जब वो साड़ी पहनकर खेत में पानी भरने जाती तो लगता कि बस झुकते ही पूरा ब्लाउज फट जाएगा।
पहली नज़र का खेल
पहले दिन ही जब मैं पहुँचा तो रुचि रसोई में चाय बना रही थी। पसीने से भीगी हुई, बालों को बांधकर, ब्लाउज के गले से झांकता हुआ सफेद गोरा सीना… मैं बस देखता रह गया। उसने मुस्कुराकर पूछा –
“भैया, चाय लेंगे या लस्सी?”
मैंने हंसते हुए कहा – “तुम्हारे हाथ की जो भी मिल जाए, चलेगा।”
वो खिलखिलाई, और तभी मुझे उसकी आँखों में एक अजीब सा शरारत का इशारा दिखा।
काम की आड़ में पास आना
अगले दिन सुबह मामा जी ने मुझे और रुचि को खेत में सिंचाई करने भेज दिया। धूप तेज़ थी, लेकिन रुचि ने आधी पारदर्शी सूती साड़ी पहन रखी थी, जिसके अंदर से ब्लाउज और पेटिकोट की लाइन साफ़ दिख रही थी। पानी भरते-भरते वो आगे झुकती, और मैं पीछे से उसकी पतली कमर देखता रहता।
जब वो बाल्टी उठाती, तो ब्लाउज का गला नीचे खिसक जाता और मुझे उसके गोल-गोल उभरे हुए सेब जैसे स्तन की झलक मिलती।
“भैया, ज़रा रस्सी पकड़ना,” उसने कहा, और मैं उसके बिलकुल पीछे खड़ा हो गया। जैसे ही मैंने रस्सी पकड़ी, मेरा हाथ उसके हाथ से टच हुआ, और दोनों के बीच एक अजीब सी बिजली सी दौड़ गई।
पहला छुपा स्पर्श
थोड़ी देर बाद वो झुककर बाल्टी भर रही थी, और मैं उसके पास से गुजरने का बहाना बनाकर हल्के से उसकी कमर को छू गया। वो एकदम से सीधी हुई, लेकिन कुछ बोली नहीं… बस मुझे देख कर मुस्कुरा दी। उस मुस्कान में एकदम साफ लिखा था – “मैं भी तैयार हूँ।”
खेत में पहली चुदाई
दोपहर हो गई और धूप में काम करते-करते पसीना बहने लगा। मामा घर चले गए, लेकिन हम दोनों वहीं रह गए। मैं पास जाकर बोला –
“गर्मी लग रही है, पेड़ के नीचे बैठते हैं।”
पेड़ की छांव में बैठते ही मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। उसने हल्की सी ना-ना की, लेकिन खुद हाथ नहीं छुड़ाया। मैं धीरे-धीरे उसके गले के पास झुक गया। उसका बदन पसीने में भीनी-भीनी खुशबू छोड़ रहा था।
जैसे ही मैंने उसके होंठ चूमे, वो धीरे से कराह उठी – “भैया… कोई देख लेगा।”
मैंने हंसकर कहा – “यहाँ कोई नहीं आएगा।”
अगले ही पल मैंने उसकी साड़ी का पल्लू हटाया और उसके गोल, सफेद, दूध से भरे जैसे स्तनों को पकड़ लिया। वो आह भरते हुए मेरी गोद में आ गई। मेरी उंगलियां उसके निप्पल से खेल रही थीं, और वो अपनी कमर हिलाकर मेरे लंड को छू रही थी।
मैंने उसकी साड़ी और पेटिकोट उतारा, सामने उसकी गीली गुलाबी चूत चमक रही थी। मैं नीचे झुककर चाटने लगा।
“आह्ह्ह विक्रम… बस… ऐसे…” – वो मचल रही थी।
उसकी चूत से निकलता गरम रस मेरे होंठों को भिगो रहा था। मैं अब रुक नहीं पा रहा था। मैंने पैंट नीचे खींचा और अपना गरम लंड उसकी चूत में घुसा दिया।
“आह्ह्ह… धीरे…” – उसने कहा, लेकिन मैंने एक ही झटके में पूरा डाल दिया। उसकी चीख पेड़ों में गूंज गई।
मैं तेज़-तेज़ झटके मार रहा था, और वो मेरे गले में हाथ डालकर खुद को दबा रही थी।
“विक्रम… जोर से… और… आह्ह्ह…” – उसकी सांसें टूट रही थीं।
कुछ देर बाद मैं उसके अंदर ही फट पड़ा। हम दोनों पसीने में भीगे हुए, थके-हारे वहीं लेट गए।
दूसरे दिन का और भी पागलपन
अगले दिन मामा जी फिर हमें खेत भेज गए, लेकिन आज रुचि ने और भी तंग ब्लाउज पहना था। जैसे ही मामा की नज़र हटी, उसने आकर मेरे कान में कहा –
“आज मैं तुम्हें घर के कमरे में मजा दूँगी।”
और सच में, दोपहर को हम दोनों चोरी-छुपे घर के स्टोर रूम में घुस गए। उसने दरवाज़ा बंद किया, मेरी पैंट उतारी, और झुककर मेरे लंड को मुंह में ले लिया।
“आह्ह्ह… रुचि…” – मैं बस कराह रहा था।
उसकी जीभ मेरे लंड पर ऊपर-नीचे घूम रही थी, और मैं दीवार पकड़कर खड़ा था।
कुछ देर बाद मैं खुद को रोक नहीं पाया और उसे पलटकर पीछे से पकड़ लिया। साड़ी कमर तक चढ़ा दी, और पीछे से उसकी टाइट चूत में अपना लंड डाल दिया।
“हाँ… विक्रम… मार… और जोर से…” – उसकी चीखें पूरे कमरे में गूंज रहीं थीं।
हम दोनों ऐसे पागलपन में लगे रहे कि समय का होश ही नहीं रहा। जब खत्म हुए तो दोनों के बदन से पसीना टपक रहा था, और चेहरे पर बस एक ही बात लिखी थी –
थोड़ा काम, और बहुत सारा सेक्स का मजा।
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