मौसी मौसा जी की कामुक चुदाई लाइव ब्लू-फिल्म: हिंदी सेक्स स्टोरी

मेरा नाम है विशाल, और मैं 22 साल का एक कॉलेज स्टूडेंट हूँ। मैं आगरा के एक छोटे-से मोहल्ले में रहता हूँ, जहाँ की गलियों में ताजमहल की छाया और पुरानी हवेलियों की रौनक आज भी बसी है। मेरी ज़िंदगी साधारण थी—कॉलेज, दोस्तों के साथ मस्ती, और छुट्टियों में घर पर समय बिताना। लेकिन पिछले साल की एक घटना ने मेरी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। यह कहानी मेरी मौसी, ममता, और मौसा जी, राकेश, की है। मैं जानता हूँ कि यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यह मेरी सच्चाई है, और मैं इसे पूरी ईमानदारी से आपके सामने रख रहा हूँ।

ममता मौसी, मेरी माँ की छोटी बहन, 35 साल की थीं। उनका चेहरा खूबसूरत था, और उनकी साड़ी में लिपटा हुआ बदन किसी को भी अपनी ओर खींच सकता था। उनकी गहरी आँखें और मुस्कान में एक ऐसी मिठास थी, जो मेरे दिल को बेचैन कर देती थी। मौसा जी, राकेश, 38 साल के थे, एक सरकारी कर्मचारी, स्मार्ट और शांत स्वभाव के। दोनों की शादी को 10 साल हो चुके थे, और उनकी केमिस्ट्री देखकर हर कोई जलता था। मैं बचपन से ही मौसी के बहुत करीब था। वे मुझे बहुत प्यार करती थीं, और मैं उनके घर अक्सर छुट्टियाँ बिताने जाता था।

पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों की बात है। मेरे माता-पिता को एक पारिवारिक समारोह के लिए दिल्ली जाना था, और उन्होंने मुझे मौसी के घर छोड़ दिया। मौसी और मौसा जी का घर आगरा के एक शांत इलाके में था। मैं उनके घर पहुँचा, और मौसी ने मुझे गले लगाकर स्वागत किया। “विशाल, तू तो अब जवान हो गया है!” उन्होंने हँसते हुए कहा। मैंने शरमाते हुए जवाब दिया, “हाँ, मौसी, अब तो मैं कॉलेज में हूँ!” मौसा जी ने भी मेरी पीठ थपथपाई और कहा, “विशाल, अब तू बड़ा हो गया है। कोई गर्लफ्रेंड बनाई या नहीं?”

उनके मज़ाक ने मुझे हँसा दिया, लेकिन मेरे मन में एक अजीब-सी बेचैनी थी। मौसी का घर हमेशा की तरह गर्मजोशी से भरा था। दिन में मैं मौसी के साथ गपशप करता, और मौसा जी अपने ऑफिस चले जाते। लेकिन उस रात कुछ ऐसा हुआ, जिसने मेरे मन को हिला दिया।

उस रात, मैं अपने कमरे में सो रहा था। अचानक देर रात मुझे प्यास लगी, और मैं पानी लेने किचन की ओर गया। मौसी और मौसा जी का बेडरूम रास्ते में था, और उनका दरवाज़ा हल्का-सा खुला था। मैंने अनजाने में अंदर झाँका, और जो मैंने देखा, वह मेरे लिए किसी लाइव ब्लू-फिल्म से कम नहीं था। मौसी और मौसा जी एक-दूसरे में पूरी तरह खोए हुए थे। मौसी की साड़ी फर्श पर पड़ी थी, और मौसा जी उनकी गोरी कमर को सहला रहे थे। मैं ठगा-सा खड़ा रह गया।

मौसी की सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थीं। “राकेश, धीरे… तुम आज बहुत जोश में हो,” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा। मौसा जी ने हँसते हुए जवाब दिया, “ममता, तुम्हारी खूबसूरती मुझे पागल कर देती है।” मैं जानता था कि मुझे वहाँ से चले जाना चाहिए, लेकिन मेरे पैर जैसे जम गए थे। मैंने देखा कि मौसा जी ने अपनी पैंट उतारी, और उनका सख्त लंड मौसी के सामने था। मौसी ने उसे प्यार से सहलाया और धीरे-धीरे अपने मुँह में लिया। उनकी हर हरकत, उनकी सिसकारियाँ, और मौसा जी की गहरी साँसें मुझे किसी और दुनिया में ले जा रही थीं।

मौसा जी ने मौसी को बिस्तर पर लिटाया और उनकी चूत को सहलाया। मौसी की चूत इतनी गीली थी कि उनकी सिसकारियाँ और तेज़ हो गईं। “राकेश, और… और करो,” उन्होंने सिसकारते हुए कहा। मौसा जी ने अपने लंड को उनकी चूत पर टिकाया और धीरे-धीरे अंदर डाला। मौसी की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं। “हाँ, राकेश… और तेज़,” वह बार-बार कह रही थीं। मैं वहाँ खड़ा, उनकी चुदाई को किसी लाइव ब्लू-फिल्म की तरह देख रहा था।

मेरे मन में मिली-जुली भावनाएँ थीं। एक तरफ मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, लेकिन दूसरी तरफ मेरे अंदर की वासना जाग चुकी थी। मैं चुपके से अपने कमरे में लौट आया, लेकिन उस रात मुझे नींद नहीं आई। मेरे दिमाग में मौसी और मौसा जी की चुदाई का दृश्य बार-बार घूम रहा था। उनकी सिसकारियाँ, उनकी गर्मी, और उनका जुनून मेरे मन में एक आग जगा रहा था।

अगले दिन, मैंने मौसी और मौसा जी से सामान्य व्यवहार करने की कोशिश की। मौसी ने मुझे प्यार से नाश्ता परोसा, और मौसा जी ने मुझसे कॉलेज की बातें कीं। लेकिन मेरे मन में वह रात बार-बार उभर रही थी। मैंने सोचा कि यह सिर्फ एक रात की बात थी, और मुझे इसे भूल जाना चाहिए। लेकिन उस रात के बाद, मैं मौसी को एक नई नज़र से देखने लगा। उनकी हर मुस्कान, उनकी हर बात में मुझे एक अजीब-सी चाहत महसूस होती थी।

कुछ दिन बाद, मेरे माता-पिता दिल्ली से लौट आए, और मैं अपने घर वापस आ गया। लेकिन मौसी और मौसा जी की उस रात की यादें मेरे मन में हमेशा के लिए बस गईं। मैंने कभी उनसे इस बारे में बात नहीं की, और न ही वे जानते थे कि मैंने उनकी उस रात को देखा था। मेरे मन में उनके लिए सम्मान था, लेकिन साथ ही एक अजीब-सी उत्सुकता भी थी, जो मुझे बार-बार उस रात की ओर खींचती थी।

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