मेरा नाम पप्पू है और मैं यूपी के एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। गाँव में खेती-बाड़ी का काम तो करता हूँ, लेकिन साथ में पास के कस्बे में एक आटा चक्की वाले के यहाँ अकाउंट देखने का काम भी करता हूँ। गाँव की ज़िंदगी वैसे तो सीधी-सादी होती है, लेकिन कभी-कभी ऐसे किस्से हो जाते हैं जो आदमी की पूरी दुनिया हिला देते हैं।
मेरी शादी को चार साल हो चुके थे, और मेरी बीवी सीमा गाँव की सबसे सुंदर और जवान औरतों में गिनी जाती थी। गोरी-चिट्टी, भरपूर बदन, और आँखों में वो मासूमियत, जिससे कोई भी पहली नज़र में फिदा हो जाए।
मेरे बॉस का नाम हरिराम साहू है। वो करीब 50 साल के होंगे, लेकिन पैसे और रुतबे के आगे उनकी उम्र कोई मायने नहीं रखती थी। गाँव-कस्बे में उनका खूब नाम था, और उनके पास पैसों की कमी तो बिलकुल नहीं थी।
शुरुआत हुई एक चालाकी से
एक दिन साहूजी ने मुझसे कहा,
“पप्पू, इस महीने का हिसाब तो तुम्हारी बीवी के हाथ से बनवाऊँगा, देखूं कितना होशियार है।”
मैंने सोचा, इसमें क्या बुराई है? वैसे भी सीमा को पढ़ाई-लिखाई आती थी।
अगले दिन मैं सीमा को अपने साथ चक्की ले गया। साहूजी ने बड़ी मीठी बातें करके उसका मन जीत लिया।
“बहू, तुम तो बड़ी समझदार लगती हो, पप्पू तो भाग्यशाली है जो तुम जैसी बीवी मिली।”
सीमा शरमा के मुस्कुरा दी।
धीरे-धीरे बढ़ता नजदीकी का खेल
अब साहूजी कभी-कभी उसे अकेले बुलाने लगे, कहते –
“बहू, तुम आओ तो काम जल्दी निपट जाता है, पप्पू तो अकड़ू है, तुमसे मीठी बात हो जाती है।”
गाँव में लोगों को शक होने लगा, लेकिन मुझे भरोसा था कि सीमा ऐसा कुछ नहीं करेगी।
एक दिन मैं खेत में धान लगाने गया था, और साहूजी ने बहाना बना कर सीमा को अपने घर बुला लिया।
साहूजी का असली इरादा
साहूजी ने घर में कोई नौकर नहीं रखा था, अकेले थे। सीमा जैसे ही अंदर गई, साहूजी ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
“बहू, आज तुम्हें अपने हाथ का बना हुआ गन्ने का रस पिलाऊंगा,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
रस पीते-पीते उन्होंने उसकी हथेली थाम ली।
“तुम्हारे हाथ कितने मुलायम हैं, बहू… पप्पू तो इनका पूरा मजा नहीं ले पाता होगा।”
सीमा ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन साहूजी का हाथ और कस गया।
“आज तुम्हें ऐसा मजा दूँगा कि तुम भूल जाओगी कि पप्पू भी कोई मर्द है।”
देसी चुदाई का खुला खेल
साहूजी ने उसे अपनी ओर खींच लिया और होंठों पर अपने होंठ रख दिए। सीमा की साँसें तेज हो गईं, वो डर और चाह दोनों में डूब गई।
उनके हाथ अब उसकी पीठ से होते हुए कमर पर, फिर नीचे उसकी गीली हो चुकी सलवार तक पहुँच गए।
“बहू, तुम्हारी चूत तो जैसे दूध से भरी हुई है…”
सलवार नीचे खिसक गई और साहूजी का सख्त लंड उसके रसीले हिस्से से टकराया।
“आह्ह… साहूजी… ये ठीक नहीं है…” सीमा ने कहा, लेकिन आवाज में मना करने का दम नहीं था।
साहूजी ने धीरे-धीरे लंड अंदर डालना शुरू किया, और वो कराह उठी –
“हाय राम… पूरा घुस गया…”
अब वो दोनों ऐसे झूमने लगे जैसे बरसात में बैल खेत जोतते हैं।
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