शालिनी की सुहागरात: ससुर जी के साथ एक गर्म हिंदी चुदाई कहानी : नमस्ते दोस्तो! आज मैं आपके लिए लाया हूँ एक ऐसी कहानी, जो दिल को छू लेगी और थोड़ा सा तड़का भी देगी। ये कहानी है शालिनी की, एक जवान और खूबसूरत लड़की की, जिसकी ज़िंदगी में एक अनचाहा मोड़ आया और उसकी सुहागरात ने एक नया रंग ले लिया। ये एक 18+ कहानी है, तो कृपया अपनी उम्र चेक कर लें। चलिए, शुरू करते हैं!
शालिनी, 24 साल की एक खूबसूरत लड़की, दिल्ली के एक रईस मोहल्ले में रहती है। वो अपने माता-पिता की इकलौती बेटी है। उसका रंग इतना गोरा है मानो दूध की तरह, और उसका फिगर 36-26-38 का है। जब वो चलती है, तो उसकी कमर का लचकना और कूल्हों का हिलना देखकर मोहल्ले के नौजवानों से लेकर बुजुर्गों तक का दिल मचल जाता है। लेकिन शालिनी का ध्यान सिर्फ अपनी पढ़ाई और दोस्तों पर रहता था। उसने पिछले साल ही एम.ए. (अंग्रेजी) की डिग्री हासिल की है।
शालिनी के पिता, प्रकाश शर्मा, एलआईसी में ऑफिसर थे, लेकिन चार साल पहले उनका देहांत हो गया। उसकी माँ, सुनीता, एक गृहिणी हैं। शालिनी के दो बड़े भाई हैं, जिनकी शादी हो चुकी है और वो अलग रहते हैं। शालिनी कॉलेज के दिनों में थोड़ी बिंदास थी। उसने अपने कुछ सहपाठियों के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे, लेकिन ये बात किसी को नहीं पता थी।
शालिनी की शादी
कुछ समय बाद, शालिनी की शादी दिल्ली के एक पुलिस ऑफिसर, विक्रम, से तय हो गई। विक्रम के पिता, मोहन जी, एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी थे, जिन्हें सभी प्यार से मोहन जी कहते थे। उनकी पत्नी, कमिनी, एक मशहूर लेखिका थीं, जिन्होंने 8-10 किताबें लिखी थीं। लेकिन मोहन जी का एक दूसरा रूप भी था। वो जवानी से ही औरतों के दीवाने थे। अब 55 साल की उम्र में भी उनका जोश और स्टैमिना जवानों जैसा था। उनका लंड 8.5 इंच लंबा और 3.5 इंच मोटा था, और वो चुदाई में 25-30 मिनट तक रुकते नहीं थे। इसीलिए जो औरत एक बार उनके बिस्तर पर आती, वो बार-बार लौटती थी।
सुहागरात का अनचाहा मोड़
आज शालिनी की सुहागरात थी। परसों ही उसकी शादी विक्रम से हुई थी। शालिनी अपने कमरे में दुल्हन के जोड़े में सज-धजकर बैठी थी, और उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसकी भाभी और सहेलियों ने उसे सुहागरात के बारे में सब कुछ बता दिया था – कि पति उसे चूमेगा, उसकी चूचियों को दबाएगा, कपड़े उतारेगा, और फिर अपनी मर्दानगी से उसकी चूत की प्यास बुझाएगा। शालिनी को चुदाई का अनुभव पहले से था, लेकिन वो डर रही थी कि कहीं विक्रम को उसका अतीत न पता चल जाए।
तभी कमरे का दरवाजा खुला। शालिनी ने तिरछी नजर से देखा तो चौंक गई – कमरे में विक्रम नहीं, बल्कि उसके ससुर, मोहन जी, खड़े थे। शालिनी का माथा ठनक गया। सुहागरात के दिन ससुर जी यहाँ क्या करने आए? वो चुपचाप सिकुड़कर बैठी रही।
मोहन जी बिस्तर के पास आए और मुस्कुराते हुए बोले, “बेटी, मैं जानता हूँ तुम अपने पति का इंतज़ार कर रही हो। हर नई दुल्हन को इस रात का बेसब्री से इंतज़ार होता है। लेकिन विक्रम आज नहीं आ पाएगा। थाने से अभी फोन आया था। शहर में डकैती की वारदात हुई है, और वो ड्यूटी पर चला गया। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारी सुहागरात को खाली नहीं जाने दूँगा।”
शालिनी को मोहन जी की बात समझ नहीं आई। वो हैरानी से उनका चेहरा देखने लगी। मोहन जी ने आगे बढ़कर उसे बिस्तर से उठाया और खड़ा कर दिया। फिर हँसते हुए बोले, “घबराओ मत, बेटी। विक्रम नहीं है तो क्या, मैं तो हूँ। मैं तुम्हारी सुहागरात को यादगार बना दूँगा।” इतना कहकर उन्होंने शालिनी को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके होंठों पर चूम लिया।
शालिनी का गुस्सा और मजबूरी
शालिनी चौंक गई और पीछे हटते हुए बोली, “ये आप क्या कर रहे हैं? मैं आपके बेटे की पत्नी हूँ, और आपके लिए बेटी जैसी। आप मुझसे ऐसा कैसे कर सकते हैं?”
मोहन जी हँसे और बोले, “अरे बेटी, मैं तो बस तुम्हारी सुहागरात को बर्बाद होने से बचा रहा हूँ। हर लड़की शादी से पहले शिवलिंग पर जल चढ़ाती है और माँगती है कि उसका पति उसे सुहागरात में खूब प्यार करे। मैं बस वही कर रहा हूँ। समझी?”
शालिनी ने शर्म से सिर झुका लिया और धीरे से बोली, “मुझे सब समझ आ रहा है, लेकिन ये गलत है। आप मेरे ससुर हैं।”
मोहन जी ने उसकी चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से सहलाते हुए कहा, “गलत-सही की बात छोड़ो। मैं नहीं चाहता कि मेरी बहू अपनी सुहागरात में तड़पे। और तुम्हारी सास को चिंता मत करो। मैंने उनके दूध में नींद की गोली मिला दी है। वो सुबह तक सोती रहेंगी।”
शालिनी अब फँस चुकी थी। उसने सोचा कि अगर उसने मना किया, तो ससुर जी नाराज़ हो सकते हैं। उसने धीरे से कहा, “ठीक है, बाबूजी। आप जो चाहते हैं, वो करें। मैं मना नहीं करूँगी।”
चुदाई का तूफान
मोहन जी ने शालिनी को अपनी बाँहों में कस लिया और उसके होंठों को चूमने लगे। उनके हाथ शालिनी की चूचियों पर थे, और वो ब्लाउज़ के ऊपर से उन्हें मसल रहे थे। शालिनी भी अब गर्म होने लगी थी। उसने मोहन जी की कमर पकड़ ली और उनके लंड को पैंट के ऊपर से सहलाने लगी।
मोहन जी ने शालिनी की साड़ी का पल्लू खींचकर नीचे गिरा दिया। उसकी भारी चूचियाँ ब्लाउज़ में कैद थीं, जो बाहर निकलने को बेताब थीं। मोहन जी ने ब्लाउज़ के बटन खोले, और ब्रा का हुक खोलते ही शालिनी की चूचियाँ उनके सामने झूलने लगीं। वो उन पर टूट पड़े और चूसने लगे। शालिनी के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आह… बाबूजी… क्या कर रहे हैं… उफ्फ…”
मोहन जी ने उसका पेटीकोट भी उतार दिया और पैंटी खींचकर फेंक दी। अब शालिनी पूरी तरह नंगी थी। वो शर्म से अपनी चूत को हाथों से ढकने लगी, लेकिन मोहन जी ने उसे पकड़कर बिस्तर पर लिटा दिया। वो नीचे बैठ गए और शालिनी की चूत को सूँघने लगे। उसकी सौंधी खुशबू ने उन्हें पागल कर दिया। उन्होंने अपनी जीभ से चूत को चाटना शुरू किया। शालिनी की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “उफ्फ… बाबूजी… आह… कितना मज़ा आ रहा है…”
ससुर का मोटा लंड
मोहन जी ने शालिनी को पीठ के बल लिटाया और उसकी चूचियों को मसलने लगे। वो बोले, “बेटी, मैंने तुम्हें पहली बार देखा था, तभी से तुम्हारी चूचियों का दीवाना हूँ। आज इनका रस पीने का मौका मिला।” शालिनी शरमाते हुए बोली, “आप भी ना… कितने गंदे हैं। बेटी की चूचियों को घूरते थे?”
मोहन जी हँसे, “अरे, तुम भी तो कम गंदी नहीं। ससुर के सामने नंगी पड़ी हो और मज़े ले रही हो।” फिर उन्होंने अपने कपड़े उतारे। उनका 8.5 इंच का मोटा लंड देखकर शालिनी की आँखें चमक उठीं। उसने उसे हाथ में पकड़ा और सहलाने लगी। मोहन जी बोले, “बोलो, बेटी, इसका हिंदी में नाम क्या है?”
शालिनी शरमाते हुए बोली, “बाबूजी, ये आपका लंड है। और आप इसे मेरी चूत में डालकर मुझे चोदने वाले हैं।” मोहन जी ने उसकी चूत पर लंड रगड़ा और धीरे से अंदर डाल दिया। शालिनी की चीख निकल गई, “आह… बाबूजी… कितना मोटा है… धीरे…”
चुदाई का मज़ा
मोहन जी ने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। शालिनी की चूत गीली हो चुकी थी, और अब उसे मज़ा आने लगा था। वो अपनी कमर हिलाकर लंड को और अंदर लेने लगी। वो चिल्लाई, “बाबूजी… और जोर से… मेरी चूत की खुजली मिटा दो… उफ्फ… कितना मज़ा आ रहा है…”
मोहन जी बोले, “वाह, मेरी चुदक्कड़ बहू! तू तो बिल्कुल रंडी जैसी चुद रही है। देख, आज तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँगा।” शालिनी भी गाली सुनकर और गर्म हो गई। वो बोली, “हाँ, बाबूजी… चोदो मुझे… अपनी रंडी बहू को खूब रगड़ो… आह…”
लगभग 25 मिनट तक चुदाई के बाद मोहन जी ने शालिनी की चूत में अपना माल छोड़ दिया। शालिनी भी झड़ चुकी थी। दोनों थककर बिस्तर पर लेट गए। शालिनी ने शरमाते हुए कहा, “बाबूजी, आपका लंड तो कमाल का है। लेकिन आपकी गंदी बातें और मज़ेदार थीं।”
दूसरा राउंड
थोड़ी देर बाद मोहन जी का लंड फिर खड़ा हो गया। शालिनी ने देखा तो हँसते हुए बोली, “क्या बाबूजी, अभी भी मन नहीं भरा?” मोहन जी बोले, “अरे, मेरी रंडी बहू, तू इतनी मस्त है कि एक बार में मन नहीं भरता। चल, अब पीछे से ले।”
शालिनी घोड़ी बन गई, और मोहन जी ने उसकी गांड पर थूक लगाकर लंड सेट किया। शालिनी बोली, “बाबूजी, धीरे… मैंने कभी गांड नहीं मरवाई।” मोहन जी ने धीरे से लंड डाला, लेकिन शालिनी चिल्ला उठी, “आह… मर गई… निकालो इसे…” लेकिन थोड़ी देर बाद उसे मज़ा आने लगा। वो अपनी गांड हिलाकर लंड लेने लगी, “उफ्फ… बाबूजी… और जोर से… मेरी गांड फाड़ दो…”
आखिरकार, मोहन जी ने शालिनी की गांड में भी अपना माल छोड़ा। दोनों थककर बिस्तर पर गिर पड़े।
हनीमून का तड़का
अगले हफ्ते, शालिनी और विक्रम शिमला में अपने दोस्त गौतम और उसकी पत्नी सुमन के यहाँ हनीमून मनाने गए। वहाँ चारों के बीच एक नया खेल शुरू हुआ। गौतम और विक्रम ने अपनी बीवियों को आपस में अदल-बदल कर चोदा। सुमन और शालिनी भी खुलकर मज़े लेने लगीं। कभी चूत, कभी गांड, और कभी दोनों एक साथ – शिमला का हनीमून एक चुदाई का मेला बन गया।
एक दिन, जब गौतम शालिनी की गांड मार रहा था, और विक्रम सुमन की, तो सुमन बोली, “शालिनी, तेरा पति तो कमाल का चोदता है। और गौतम का लंड तेरी चूत को कैसा लगा?” शालिनी हँसते हुए बोली, “बिल्कुल मस्त! लेकिन मेरे ससुर जी का लंड सबसे टॉप है।”
ससुराल में माँ की प्यास
हनीमून के बाद, शालिनी और विक्रम शालिनी के मायके गए। वहाँ शालिनी को पता चला कि उसकी माँ, सुनीता, अपने पति के देहांत के बाद से तड़प रही थीं। एक दिन, सुनीता भगवान के सामने रो रही थीं, “हे भगवान, मेरे बदन में इतनी आग क्यों भरी? मैं अपनी बेटी और दामाद की चुदाई देखकर तड़प जाती हूँ।”
शालिनी ने अपनी माँ को गले लगाया और बोली, “माँ, तुमने मुझसे क्यों नहीं कहा? तुम्हारा दामाद तुम्हारी प्यास बुझा सकता है।” सुनीता शरमाई, लेकिन शालिनी ने विक्रम को बुलाकर सब बता दिया।
विक्रम ने अपनी सास को चूमना शुरू किया। सुनीता पहले शरमाई, लेकिन फिर वो भी गर्म हो गईं। विक्रम ने उनकी साड़ी उठाकर चूत चाटी, और फिर अपना मोटा लंड उनकी चूत में डाला। सुनीता चिल्लाई, “आह… दामाद जी… कितना मोटा है… मेरी चूत फट जाएगी…” लेकिन जल्द ही वो मज़े लेने लगीं।
शालिनी ने अपनी माँ की चूचियाँ दबाईं और बोली, “माँ, मज़ा आ रहा है ना?” सुनीता बोली, “हाँ, बेटी… तेरा पति तो घोड़ा है।”
गांड का मज़ा
थोड़ी देर बाद, सुनीता ने कहा, “दामाद जी, अब मेरी गांड भी मार लो।” विक्रम ने उनकी गांड में थूक लगाया और धीरे से लंड डाला। सुनीता चिल्लाई, “आह… मर गई… धीरे…” लेकिन जल्द ही वो गांड हिलाकर मज़े लेने लगीं।
चुदाई के बाद, सुनीता बोली, “दामाद जी, तुमने मेरी ज़िंदगी में फिर से रंग भर दिया।” शालिनी हँसी और बोली, “अब माँ, रोज़ मेरे साथ तुम भी चुदवाना।”
अंत
ये थी शालिनी की कहानी, जिसमें उसकी सुहागरात से लेकर हनीमून और ससुराल तक की चुदाई के रंग देखने को मिले। दोस्तो, आपको ये कहानी कैसी लगी? अगर आप चाहें, तो मैं इसे और विस्तार से लिख सकता हूँ या इसमें कुछ और तड़का डाल सकता हूँ।
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